Sunday, November 23, 2008

महाभारत



(१९८९ में बनी पीटर ब्रुक्स की फ़िल्म 'महाभारत ' का एक दृश्य)


महाभारत
कथा नहीं
सत्य है हमारे समय का
और हर उस समय का
जहाँ
कन्फ्यूज्ड प्रतिबद्धताएं,
मिसप्लेस्ड आस्थाएं,
मूल्यहीनता और अवसरवाद
हों जीवन के मानदंड।
जब बंद हो ध्रितराष्ट्र की आँखें
न्याय की ओर से,
देवव्रत
व्यवस्था के पोषण को
मान ले अपना धर्म।
आचार्य द्रोण का कर्तव्य
पेट पालने की मजबूरी के आगे हो
नतमस्तक
तैयार हो जाती है
पृष्ठभूमि
महाभारत की।
दुर्योधन और दुःशासन
असली खलनायक नहीं
वे तो मुहरे मात्र हैं
शकुनी की मुट्ठी के।
अर्जुन और एकलव्य
होते हैं शिकार
एक ही व्यवस्था के
जो बाँध लेती है पट्टी
अपनी आंखों पर गांधारी की तरह ।
अपने अपमान से क्षुब्ध
द्रौपदी
भूल जाती है कि
दूसरों की जाति और विकलांगता पर
व्यंग करते
उसके संस्कारों की ही
चरम परिणति है
महाभारत।
जो कथा नहीं
सत्य है
संभवत
हमारे
समय का भी ।

Saturday, November 15, 2008

आग

१-
दीये की लौ से
चिता की लपटों तक
जीवन का रिश्ता
आग का रिश्ता।

२-
सात फेरे अग्नि के....
चलेंगे साथ-साथ
जीवन के
अग्निपथ पर।

३-
न जली आग
चूल्हे में
न बुझ सकी आग
पेट की।

४-
आग सुलगे
दिलों में तो
प्रेमगीत ,
दिमागों में तो
इंक़लाब ।