वातानुकूलित कमरों की
बासी शीतलता में
जो जन्म लेती है
काफ़ी के प्यालों में,
आकर ग्रहण करती है
सिगरेट के धुएँ से
कविता नहीं ।
कविता वह नहीं
जिसका शव प्रकाशन के पश्चात
समीक्षक की मेज पर पड़ा है
पोस्ट मार्टम की प्रतीक्षा में ।
कविता तो लिखता है
वह बूढा
हल की नोक से
धरती की छाती पर
उसकी आँखों में झिलमिल है
पीड़ा का महाकाव्य
उसके खुरदुरे हाथों पर अंकित है
जीवन संधर्ष की गौरव गाथा ।
धान रोपते हाथों का मंत्र सुनो
ढोर चराते नन्हे बालक
क्या किसी कविता की पंक्ति नही लगते ।
मित्र
कविता
किसी रूपसी के पायल की रुनझुन नहीं
तपती दोपहरी में
पत्थर की शिलाओं पर पड़ती
हथौडे की टंकार है
दबी कुचली उन्गलिओं से टपकता
लहू है ।
कविता
किसी सीजेरियन बच्चे के जन्म का
चिकित्सकीय अभिलेख नहीं
प्रसव की वेदना का इतिहास है ।
कविता
सामाजिक जानवर के
मनुष्य बनने का
दस्तावेज़ है
अनुभूतियों की यात्राकथा पर
समय का हस्ताक्षर है।
(पुनर्प्रस्तुति)