Wednesday, January 14, 2009

कविता के बहाने

वातानुकूलित कमरों की
बासी शीतलता में
जो जन्म लेती है
काफ़ी के प्यालों में,
आकर ग्रहण करती है
सिगरेट के धुएँ से
कविता नहीं

कविता वह नहीं
जिसका शव प्रकाशन के पश्चात
समीक्षक की मेज पर पड़ा है
पोस्ट मार्टम की प्रतीक्षा में ।

कविता तो लिखता है
वह बूढा
हल की नोक से
धरती की छाती पर
उसकी आँखों में झिलमिल है
पीड़ा का महाकाव्य
उसके खुरदुरे हाथों पर अंकित है
जीवन संधर्ष की गौरव गाथा ।

धान रोपते हाथों का मंत्र सुनो
ढोर चराते नन्हे बालक
क्या किसी कविता की पंक्ति नही लगते ।
मित्र
कविता
किसी रूपसी के पायल की रुनझुन नहीं
तपती दोपहरी में
पत्थर की शिलाओं पर पड़ती
हथौडे की टंकार है
दबी कुचली उन्गलिओं से टपकता
लहू है ।

कविता
किसी सीजेरियन बच्चे के जन्म का
चिकित्सकीय अभिलेख नहीं
प्रसव की वेदना का इतिहास है ।

कविता
सामाजिक जानवर के
मनुष्य बनने का
दस्तावेज़ है
अनुभूतियों की यात्राकथा पर
समय का हस्ताक्षर है।

(पुनर्प्रस्तुति)

5 comments:

siddheshwar singh said...

कविता क्या है?
यह एक कभी न खत्म होने वाला सवाल है और इसके जवाब भी कभी न खत्म होने वाले जवाब हैं.
आपका जवाब वाजिब है ..अच्छा लगा यह जवाब!

ललितमोहन त्रिवेदी said...

कविता को आधार देती एक सुंदर कविता !बहुत खूब !

योगेन्द्र मौदगिल said...

Sunder KAVITA hai bhai........

admin said...

कविता के बहाने कविता का सुन्दर विवेचन।

Sagar said...

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