तुम फ़िर आना
हम फ़िर बैठेंगे चल कर
जमुना की ठंडी रेत पर
और करेंगे बातें
देर तक
कविता की,
कहानियों की
और तितलियों की तरह
उड़ती फिरती लड़कियों की।
तुम फ़िर आना
मौसम के बदलने की तरह
हम फ़िर बैठेंगे चल कर
कंपनी बाग़ की
किसी टूटी बेंच पर
हरियाली की उस उजड़ रही
दुनिया के बीच
देर तक महकता रहेगा गुलाब
हमारे भीतर और बाहर।
तुम फ़िर आना
हम फ़िर बैठेंगे चल कर
कालेज की कैंटीन में
समोसे की सोंधी खुशबू के बीच
ठंडी चाय पीते
देर तक करेंगे गरमागरम बहस
राजनीति पर, अर्थनीति पर
और मन ही मन जोडेंगे हिसाब
कैसे चलेगा खर्च
बाबू के मनीआर्डर के आने तक।
तुम फ़िर आना।
4 comments:
किसी टूटी बेंच पर
हरियाली की उस उजड़ रही
दुनिया के बीच
देर तक महकता रहेगा गुलाब
हमारे भीतर और बाहर।
sunder bahut hi sunder rachana,waah man moh gayi.
बहुत ही सुंदर रचना ... बधाई स्वीकारें।
beautiful
sunder
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