Saturday, November 15, 2008

आग

१-
दीये की लौ से
चिता की लपटों तक
जीवन का रिश्ता
आग का रिश्ता।

२-
सात फेरे अग्नि के....
चलेंगे साथ-साथ
जीवन के
अग्निपथ पर।

३-
न जली आग
चूल्हे में
न बुझ सकी आग
पेट की।

४-
आग सुलगे
दिलों में तो
प्रेमगीत ,
दिमागों में तो
इंक़लाब ।

8 comments:

Divine India said...

बहुत सूंदर रचना… कम शब्दों में भावनाओं का असीम प्रवाह।

Anonymous said...

बेहतरीन रचना। आग से अच्‍छी तरह खेलें हैं आप।

पारुल "पुखराज" said...

आग सुलगे
दिलों में तो
प्रेमगीत ,
दिमागों में तो
इंक़लाब ।..waah!!

योगेन्द्र मौदगिल said...

कमाल का अंदाज़ है ३पका... भी ...आपको बधाई...

Vinay said...

यथार्थवादी रचना!

अमिताभ मीत said...

क्या बात है !!
आग है भाई ... सुलगती रहे ... बहुत उम्दा सर जी !!

seema gupta said...

आग सुलगे
दिलों में तो
प्रेमगीत ,
दिमागों में तो
इंक़लाब
"what a beautiful description.."

Regards

रंजू भाटिया said...

आग का हर रंग बहुत खूबसूरत लगा ...बहुत खूब