वे हमारे चारो ओर
बिखरी रहतीं हैं
सुगन्धि की तरह ,
सौंदर्य और मासूमियत के
एहसास की तरह ,
ईश्वर के होने की तरह।
जन्म के पूर्व ही
मिटा दिए जाने की
हमारी छुद्र साजिशों के बीच
वे ढीठ
उग आती हैं
हरी डूब की तरह
और न जाने कब बड़ी हो
हमें भर देती हैं
बडक्पन के एहसास से ,
उनकी उपस्थिति मात्र से
हम हो जाते हैं
सुसंस्कृत।
उनकी किलकारियों से
भर जाता है घर में
मौसमों का मंद कलरव।
और उनके गम-सुम होते ही
बोलने लगता है
घर का सन्नाटा भी।
वे मुस्कराहट बन
चिपकी रहती है
हर समय
कभी करा देती याद
नानी
और कभी ख़ुद
दादीमाँ बन
करती मजबूर हमें
फ़िर से बच्चा बन जाने को।
उम्र भर
परायी समझे जाने के बावजूद
भरी भरी आकंठ
अपनेपन से
ईश्वर के वरदान की तरह
वे हमारे लिए
दुनिया के हर कोने में
जल रही होती हैं
प्रार्थना हे दीपक की तरह।
12 comments:
सचमुच। वे हमारे (किसी खास लिंग के लिए नहीं) लिए जलती हैं। फेमिनिज्म इसी बात को माइनस कर देता है।
एसबी भाई कभी आप अमर उजाला में थे क्या फरीदाबाद। शायद हम लोग मिले हैं। ऐसा लगता है।
भले ही तोड़े सौ बार
लेकिन आखिर दिलों को जोड़ती हैं.
बहुत बढ़िया साहब, वाकई बहुत अच्छा लगा.
अनिल भाई अमर उजाला में तो मैं कभी नहीं रहा पर मिले हुए लगते हैं यह जान कर खुशी हुई । दुनिया गोल है कभी मिल भी जायेंगे।
हाँ, बेटियाँ ये सब करती हैं और भी बहुत कुछ जैसे कठिन समय में सहारा बन जाती हैं, बिना कुछ कहे ही बहुत कुछ सुन लेती हैं, समझ लेती हैं, बिना सिखाए ही नर्स बन जाती हैं, कम उम्र में ही छोटे भाई बहन की और यहाँ तक की अपने माता पिता की भी माँ बन जाती हैं।
घुघूती बासूती
सचमुच बेटियाँ ऐसी ही होती हैं....
सच है.
"बिखरी रहतीं हैं
सुगन्धि की तरह ,
सौंदर्य और मासूमियत के
एहसास की तरह ,
ईश्वर के होने की तरह।"
घर को घर बनाती हैं बेटियाँ ....
betiyaan raunaken hoti hain ..
.bahut acchha likha hai aapney
आज सुबह से ही घर में बार-बार 'अगले जनम मोहे बितिय न कीजो' बज रहा है और (देर से ही सही) ऐसे में आपकी कविता पढ़ना...
क्या कहूँ?
बेटियाँ हमारे जीवन का हुलास हैं. वे ऐसे ही रंग भरती रहें.
बहुत खूब!!
उम्र भर
परायी समझे जाने के बावजूद
भरी भरी आकंठ
अपनेपन से
ईश्वर के वरदान की तरह
वे हमारे लिए
दुनिया के हर कोने में
जल रही होती हैं
प्रार्थना हे दीपक की तरह।
Very true. Your thoughts are true and very close to my heart.
Thanks for beautiful composition.
बेटियों की याद आपके ब्लाग पर देख कर बहुत अच्छा लगा सिंह साहेब ! शुभकामनायें
aapne mere bhi man ki baat utaar di.....shashwat satya.....sundar kavya.
उम्र भर
परायी समझे जाने के बावजूद
भरी भरी आकंठ
अपनेपन से
ईश्वर के वरदान की तरह
वे हमारे लिए
दुनिया के हर कोने में
जल रही होती हैं
प्रार्थना हे दीपक की तरह।
सच्ची सुंदर बात है यह
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