वह अधनंगा,
मरियल सा आदमी
जो अभी-अभी
तुम्हारी विदेशी कार के
नीचे आते आते बचा है।
और जिसके बारे में
सोच रहे हो तुम
कि क्यों बनाता है ऊपर वाला
ऐसे जाहिलों को,
नहीं है जिन्हें तमीज
ठीक से सड़क पर चलने तक की।
या फ़िर सोच रहे होंगे कि
बेवकूफ मरेगा अपनी गलती से
और दोष मढ़ जायेगा
तुम्हारे सिर।
मगर दोस्त
तुम हो परेशान नाहक ही
उसने तो जरूरी नहीं समझा
पलट कर देखना तक।
न ही दी तुम्हे गालियाँ
मुंह बिचका कर।
उसकी नज़र में हो तुम
अस्तित्वहीन।
तुम्हारी चमचमाती कार
कहीं नहीं है
उसकी प्राथमिकताओं में।
उसे जल्दी है जा कर सींचने की
मुरझा रहे पौधों को।
दूहनी है गाय
दुलारने है बछडे।
नहा कर जल भी देना है
नहीं तो रह जायेगे प्यासे ही
बरगद के नीचे भोले बाबा।
नहीं देख पायेगीं
रात की शराब और
डिस्को की चकाचौंध रौशनी से
चुन्धियाई तुम्हारी आँखें
यह सत्य कि
बची है जो कुछ तहजीब,
संस्कृति और सम्मान,
इंसानियत और कर्तव्यनिष्ठा,
वह मरियल आदमी
उसका वाहक है।
उसने नहीं है खाया
कमीशन किसी सौदे में,
नहीं किया है कोई घोटाला।
वह नहीं रहा है शामिल
किसी धरने, जुलूस और दंगे में।
नहीं तोडा है उसने
कोई पूजागृह।
उसे नहीं आकृष्ट करते
तुम्हारे क्लब और माल।
वह तो बस
अपना खून पसीना एक कर
देश की माटी में,
जुटा है जोड़ने में
एक-एक ईंट
ताकि हो सके पथ निष्कंटक
आने वाली पीढियों का।
ताकि मिट सके
भूख, बिमारी, गरीबी और जहालत,
ताकि बन सके देश फ़िर से
महान।
ताकि सहूलियत से
दौड़ती रहे
तुम्हारी चमचमाती कारे।
5 comments:
सटीक रचना!!
...... अति सुंदर ह्रदय स्पर्शी रचना ...... अंतर्मन की गहराइयों में उतर आया.... एक -एक शब्द लहर सी पैदा करने को काफी है...... आपके नये पोस्ट की बेसब्री से प्रतीक्षा में....
वह तो बस
अपना खून पसीना एक कर
देश की माटी में,
जुटा है जोड़ने में
एक-एक ईंट
ताकि हो सके पथ निष्कंटक
आने वाली पीढियों का।
ताकि मिट सके
भूख, बिमारी, गरीबी और जहालत,
ताकि बन सके देश फ़िर से
महान।
ताकि सहूलियत से
दौड़ती रहे
तुम्हारी चमचमाती कारे।
" mind blowing very touching"
Regards
आपकी संवेदनशीलता से प्रभावित हूं.अच्छी कविता.अगर वर्ड वेरिफ़िकेशन हट दे तो कैसा रहे?
क्या बात है भाई......... बेहतर रचना........... बधाई........
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