Monday, August 25, 2008

युध्द

जब भी तुम
मौन रहोगे
अन्याय के प्रतिकार में ,
अपनी आत्मचेतना के बिरुद्ध
रुक जाओगे
राजसत्ता के पायों से बाँध कर ।
होगे तुम उपहास के पात्र मात्र।


महारथी
जब जब तुम होगे
अन्याय के साथ,
अपनी वैभवपूर्ण वीरता के
भग्नावशेषों पर खड़े
जब तुम लड़ रहे होगे
अन्तिम निर्णायक युद्ध
पाओगे स्वयं को अकेला ही
तुम्हारा सारथी तक
होगा तुम्हाए विरुद्ध।


अनाचार का साथ देते
खोखले हो चुके
तुम्हारे बाजुओं का समस्त बल
अपर्याप्त होगा
निकाल पाने को
तुम्हारे रथ के पहिये
दुर्भाग्य की कीचड़ से।

अब क्या शोक की
पार्थ ने बींध डाली
तुम्हारी चौडी छाती
तुम्हारे निहत्था रहते
वासुदेव की उपस्थिति में।
यह तो प्रतिफल था
अन्याय के साथ का,
सत्य के प्रतिरोध का।

मित्र
समय कर देता है
सारे हिसाब बराबर।

युद्ध धर्म तो है
किंतु तभी
जब तुम्हारी प्रत्यंचा चढ़े
सत्य के पक्ष में
अन्याय के प्रतिकार में।
पराजय व्यक्ति का अंत भले हो
विचार का अंत नही ।
और विजय युद्ध का प्राप्य नहीं
परिणाम भले हो।
याद रखो
जीवन का उत्सर्ग
युद्ध नही
मूल्यों की पुनर्स्थापना का
यज्ञ है।

5 comments:

Asha Joglekar said...

Apratim !

शोभा said...

महारथी
जब जब तुम होगे
अन्याय के साथ,
अपनी वैभवपूर्ण वीरता के
भग्नावशेषों पर खड़े
जब तुम लड़ रहे होगे
अन्तिम निर्णायक युद्ध
पाओगे स्वयं को अकेला ही
तुम्हारा सारथी तक
होगा तुम्हाए विरुद्ध।


अनाचार का साथ देते
बहुत अच्छा लिखा है. सस्नेह

प्रदीप मानोरिया said...

जब भी तुम मौन रहोगे
अन्याय के प्रतिकार में ,
अपनी आत्मचेतना के बिरुद्ध
रुक जाओगे
बहुर सुंदर पंक्तियाँ सुंदरभावो की अभिव्यक्ति
हिन्दी कविता के आनंद के लिए लोगिन करें http:// manoria.blog.co.in and http:// manoria.blogspot.com

राजेंद्र माहेश्वरी said...

जब भी तुम
मौन रहोगे
अन्याय के प्रतिकार में ,

जिस दिन सच्चाई को देखकर भी हम बोलना नही चाहते उसी दिन हमारी मोंत की शुरुआत हो जाती है |

Amit K Sagar said...

बहुत अच्छी रचना. शुक्रिया.