तमाम उम्र सितारों का तलबगार रहा,
हरेक शख्स ख्वाहिसात का शिकार रहा।
हुस्न की धूप ढली जिस्म के मौसम बदले,
आइना कितने हादसों का हमकिनार रहा।
उसे ही आया नहीं मेरी वफाओं का यकीन,
मुझे तो उसकी ज़फाओं का ऐतबार रहा।
तुम्हारी याद के रंगों का खुशबुओं का वजूद,
तमाम रात मेरे साथ मिस्ल-ऐ -यार रहा।
मेरी ही शक्ल का एक शख्स, मेरा हमनाम
मेरे ग़मों का गुनाहों का राजदार रहा।
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