Thursday, August 28, 2008

मुंडेर के पंछी

हर साल
गर्मियां शुरू होते ही
नानी लटका देती थी
मुंडेर से
मिट्टी की हंडिया
भर कर जल से।
नहीं भूलती थी
डालना रोज पानी
हंडिया में
शालिग्राम का भोग लगाने के पश्चात,
संभवतः
यह भी था एक हिस्सा
उनकी पूजा का।

उनको था विश्वास
की गौरैयों के रूप में
आते हैं
प्यासे पूर्वज
और चोंच भर पानी से हो तृप्त
कर जाते है हम पर
आशीष की वर्षा ।

हम बच्चों के लिए
यह था एक कौतुहल
अनेक प्रश्नों के साथ
होते हम प्रतीक्षारत रोज
इस अनुष्ठान के लिए ।

और एक दिन
नानी नहीं रहीं ।
वे भी किसी दिन
अब
आतीं होंगी
हमारी मुंडेर तक
शामिल गौरैयों के झुंड में
तलाश में जल की
और दे जाती होंगी
ढेर सारा आशीष ।

पुत्र !
पात्र को
रीता न होने देना
हम भी आयें शायद
एक दिन तुम्हारी मुंडेर तक
गौरैयों के झुंड में।

2 comments:

Udan Tashtari said...

भावुक कर दिया आपने.

बहुत उम्दा रचना. वाह!!

पारुल "पुखराज" said...

bahut sundar bhaav...saari nainyen ek si hoti hain....badey naye bhaav....badhaayi